बहुत सुन्दर... Manish आपको धन्यवाद कि आपने साझा की | आज के कटु सत्य को सरलता से शब्दों में उतारा है | "करूँ सेवा मैं समाज की या चुन लूं लाभ का व्यापार " :( "अहम् ना होता तो शायद इस प्रश्न की भी ज़रुरत ना होती | आपसे आग्रह है कि आपनी कृतियाँ, प्रतियोगिता में अवश्य भेजें | और लिखते रहें | शुभकामनाएं |
Nicely Done man !! awesome....keep going....Mayank T heRe...
ReplyDeletethis is gud yaar.. keep it up.
ReplyDelete-Prakash S Chauhan
Kya baaat.
ReplyDeleteAmazing . :)
Ek kavita MeRi bhi ::
ReplyDeleteआकर्षण::
प्रति पल बिकता दर्पण है , आधार है आकर्षण.
चलते-फिरते चित्रोँ का , इतिहास है आकर्षण.
ठहराव नहीं है नदी की मनसा , कारन है आकर्षण.
आकर्षित हो समुद्र के मद से ,चंचल नदी की गति का प्रयोजन है आकर्षण.
चाँद के प्रतीक्षारत चकोर की ,परिणाम-रहित व्याकुलता का अलंकार है आकर्षण.
अस्तित्व समाप्ति से भय मुक्त , एसे प्रेम का गौमुख है आकर्षण.
एक नहीं हम सब कैसे भी पर ,एकता का सूत्र धार है आकर्षण.
सम्बंधित नहीं गगन भूमि से किन्तु , उसके हर पल दिखने का आधार है आकर्षण.
मयंक त्रिपाठी ....(wah wah wah wah !! :P )
bahut sehi , ek dum akarshit kar dene waali kavita hai ..
Deleteek line meri taraf se bhi :)
samundra ki chanchalta ki ho,ya ho kehi din raat ki baat
srishti ka aadhar hai aakarshan :)
Khtarnnaak bhaiyaon, mujhe is baat ka aabhaas bhi nahi tha ki main itney talented logon ke beech mian hoon! :) Ishant Agarwal
DeleteDoosri kaun aa gayi teri jindagi mai ??? ;)
ReplyDeleteNisandeh Anupam!bohot dino ke baad itni suder kavita padhi. Bhav or shabdo ka chunav to lajwab hai.
ReplyDeleteMast hai yaar... :)
ReplyDeleteI can relate every paragraph, nice work :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर... Manish आपको धन्यवाद कि आपने साझा की | आज के कटु सत्य को सरलता से शब्दों में उतारा है | "करूँ सेवा मैं समाज की या चुन लूं लाभ का व्यापार " :( "अहम् ना होता तो शायद इस प्रश्न की भी ज़रुरत ना होती |
ReplyDeleteआपसे आग्रह है कि आपनी कृतियाँ, प्रतियोगिता में अवश्य भेजें | और लिखते रहें | शुभकामनाएं |