सोचता है दिल क्यों लगती है ये राहे अनजान
इस खिलखिलाहट में खो गयी वो मासूम मुस्कान
कर तो दिए खड़े ढेर रुप्यूओं के
पर कह रह गयी हमारी तुम्हारी पहचान
वो छोटो छोटी खुशियाँ , वो लड़ना हमारा
वक़्त बेवक्त फॉर वो रूठना मनाना हमारा
अब जो हमे फुर्सत का लम्हा मयस्सर नहीं होता
फीर किस्से रूठना और किसको मनाना , सोचता है दिल बेचारा
सोचता है दिल क्यों लगती है ये राहे अनजान
इस खिलखिलाहट में खो गयी वो मासूम मुस्कान
सीधी सी थि ये जिंदगी जब खुशियाँ हमे ढूंढती थी
अब जो सोचु तो लगे हम खुशियाँ को ढूंढते है
मिलती थी जो ठंढक तुम्हारे पहलु में आँगन में बैठ के
अब हम उस ठंढक को बाजारू बर्तनों में ढूंढते है
रहते तो है एक घर में एक ही छत के निचे
फीर क्यों हम दो पाल की संगत को ढूंढते हैं
मिले है जो ये दो पल , आओ बैठें बातें करें
खोजे तो सही की किसने बनाया मुझको तुमसे अनजान
जो सून सकें थोरा सा हम अपने दिल की तान
चलो साथ ख़ोज लायें वो मासूम मुस्कान
kya baat hai!!! :)
ReplyDeletenice!! :)
:) Thanku simi ..
ReplyDelete