Friday, December 28, 2012

अंधेरी सुबह


 अंधेरी सुबह 

है आँखो  में आंसू 
       होठ हैं बेसब्द 
करनी ने एक और मानव की ही 
    किया है पुरे समाज को स्तब्ध 

कोई कहता है ये पुलिस की नाकामी 
     किसी को लगती है ये सरकार की लाचारी 
कर सकते हैं ये आरोप प्रत्यारोप कल से 
    आज सुबह तो लगता है , थी ये मेरी ही जिम्मेवारी 

कहते  हैं समाज जिसे 
   ये मेरे  तुम्हारे सोच का ही तो किस्सा है  
अगर लुटती है एक इज्ज़त सरेआम 
   आपका मेरा भी तो उसमे लुटता एक हिस्सा  है 

अब जो टुटा है ये कहर इस कदर 
    देश सोया यूवा  जागे हैं 
हिंदुस्तान को सुरक्षित एवम भ्रस्टाचार रहित बनाने के 
    अब हमारे और भी पुख्ता इरादे हैं 

अगर आवाज़ नहीं उठाई इस बार 
   मानव कहलाने में  शर्म आएगी 
आज नहीं तो कल 
    एक और "हिन्दुस्तान की बेटी"  अपने प्राण गवाएगी ...

मनीष रंजन    






2 comments:

  1. Bahut sundar abhivyakti...
    Par hindustan ki pareshani hai ki har jaat ki apni hi ek jubani hai...
    Itna samvedanheen manushya ho chala hai ki jab tak mere saath nahin ghata to kya bigdaa...
    Phir bhi aasha hai kabhi to is raat ki subah hogi - AMEN

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  2. Vidambana ye hai ki in khoobsurat panktiyon par apna ullas pradarshit karoon ya jis anhoni par ye likhi gayi hain us par apna rosh....

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